MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?

उत्तर -

मार्क्स के विचार (Vieuts of Marx)

औद्योगिकरण परकीयकरण की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। दूसरे शब्दों में, कार्ल मार्क्स के अनुसार, "हम कह सकते हैं कि औद्योगिकरण ने परकीयकरण की प्रक्रिया को तेज किया है। औद्योगिकरण से पहले समाज छोटा और सरल होता था और समाज के सभी सदस्य नातेदारी व्यवस्था अथवा पारस्परिक कर्त्तव्य-बोध के आधार पर एक-दूसरे के साथ एक सूत्र में बँधे हुए होते थे; सामूहिक हितों, उद्देश्यों और स्वार्थों को अधिक महत्त्व दिया जाता था। इसीलिए व्यक्ति को वे ही कार्य करने पड़ते थे जोकि सामूहिक दृष्टि से हितकर हों। ऐसा करने में व्यक्ति को भी कोई संकोच नहीं होता था क्योंकि अपने समुदाय या समूह से उसका अपना सम्बन्ध इतना घनिष्ठ और आन्तरिक था कि समूहों के अस्तित्व व हितों से पृथक् करके वह अपने अस्तित्व व हितों की कल्पना तक नहीं करता था। व्यक्ति व समाज के बीच पूर्ण एकात्मिकता (Compete Identification) थी। ऐसी स्थिति में परकीयकरण की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। परन्तु औद्योगिकरण के साथ-साथ ये सभी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ तेजी से बदलती गई। छोटा समाज बड़ा हो गया और उसका सरल रूप जटिल रूप में बदल गया। नातेदारी व्यवस्था और पारस्परिक कर्त्तव्य-बोध का सूत्र टूट गया। व्यक्ति को सामूहिक दबाव से स्वतन्त्रता मिल गई, पर इस स्वतन्त्रता का मूल्य भी उसे चुकाना पड़ा। अब इस औद्योगिक समाज में उसे अपना समाज वाला कोई न रहा। सब अपने-अपने स्वार्थों की अधिकतम पूर्ति में जुट गए। अपने परिवार और समुदाय से उसे जो आर्थिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक सुरक्षा मिलती थी अब वह समाप्त हो गई। समाज से उसकी घनिष्ठता और आन्तरिकता भी इसी के साथ खत्म हुई और परकीयकरण की प्रक्रिया ने जड़ जमाना शुरू किया।

अतः कार्ल मार्क्स के अनुसार, औद्योगिकरण के कारण परकीयकरण या पृथक्करण की स्थिति आरम्भ हुई है। औद्योगिकरण के साथ-साथ बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों और महानगरों का विकास हुआ है। इतने बड़े समुदाय में व्यक्ति अपने को अकेला पाता है; उसे वहाँ एक अजनबी की तरह रहना पड़ता है। यह अकेलापन (Loneliness) और अनजानापन (Anonymity) परकीयकरण की प्रक्रिया को जन्म देता है क्योंकि ऐसी स्थिति में व्यक्ति में सामाजिक अवस्थाओं के प्रति उदासीनता (Apathy), विराग (Indifference), खालीपन का भाव, जीवन के उद्देश्य के प्रति उत्साह की कमी आदि उत्पनन हो जाती है। ये स्वयं ही परकीयकरण या पृथक्करण के मूर्त स्वरूप हैं।

औद्योगिक समाजों में परिवर्तन की गति भी अत्यधिक तेज होती है। फलतः नित्य नई परिस्थितियाँ व आवश्यकताएँ जन्म लेती हैं। इनका समाधान पुरानी (out of date) मान्यताओं, मूल्यों, आदर्शों व सामाजिक साधनों द्वारा नहीं हो पाता है और भी स्पष्ट रूप में, परिवर्तित परिस्थितियों में एक ओर तो सामाजिक लक्ष्य व आवश्यकताएँ बदल जाती हैं और दूसरी ओर उन आवश्यकताओं व लक्ष्यों की पूर्ति के साधन पुराने व बेकार के सिद्ध होते हैं। व्यक्ति के व्यवहारों को नियन्त्रित व निर्देशित करने के लिए नए मूल्यों, आदर्शों व साधनों का अभाव होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति मनमाने ढंग से कार्य करता है और समाज में नियमहीनता पनपती है। साथ ही व्यक्ति का सामाजिक मान्यताओं, मूल्यों व आदर्शों के साथ कुछ भी लगाव नहीं रह जाता। पृथक्करण की प्रक्रिया तभी जड़ पकड़ती जाती है। इस रूप में भी हम कह सकते हैं कि औद्योगिकरण के कारण परयीकरण या पृथक्करण उत्पन्न हुआ है। कार्ल मार्क्स का मत है कि एक-दूसरे रूप में भी औद्योगिकरण ने परयीकरण की प्रक्रिया को बल प्रदान किया है। औद्योगिकरण ने व्यक्ति में शक्तिहीनता की भावना को पनपाया है। औद्योगिक समाज में आर्थिक शक्ति और उसी के आधार पर राजनीतिक व सामाजिक सत्ता या शक्ति भी पूँजीपतियों या उद्योगपतियों के हाथों में केन्द्रित हो जाती है। समाज के बृहत्तर अंश, मेहनतकश जनता या श्रमिक वर्ग के हाथों में कोई भी सत्ता नहीं होती। अतः आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक मामलों में आम व्यक्ति अपने को शक्तिहीन पाता है। इस कारण उसमें उदासीनता व अलगावपन पनपता जाता है जोकि पृथक्करण की ही एक आरम्भिक अवस्था है।

कार्ल मार्क्स ने यह ध्यान दिलाया है कि औद्योगिक समाज में उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर होता है क्योंकि मशीनों से पूर्ण उपयोगिता बड़े पैमाने पर उत्पादन करने पर ही प्राप्त हो सकती है। मशीनों द्वारा बड़े पैमाने में उत्पादन करने के दो दुष्परिणाम होते हैं- प्रथम तो यह कि मशीन स्वयं ही श्रमिकों के अनेक कार्य तेजी से कर लेती हैं और श्रमिकों को रोजगार से निकाल फेंकती हैं। इससे बेरोजगारी फैलती है और औद्योगिक व्यवस्था के प्रति लोगों के दिल में असन्तोष की भावना उग्र होती जाती है। द्वितीयतः, उत्पादन बड़े पैमाने में होने के कारण बहुधा अति-उत्पादन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसके फलस्वरूप 'व्यापारिक मन्दी का चक्र' (Cycle of trade depression) आता रहता है जोकि बेरोजगारी को बढ़ाता, मजदूरों के वेतन को कम करता और आर्थिक संकट को उत्पन्न करता है। इसका सबसे बुरा प्रभाव श्रमिक पर पड़ता है इसीलिए सम्पूर्ण व्यवस्था के प्रति भी उनका अलगावपन बढ़ता है।

परकीयकरण या अलगाव का सामाजिक उलझाव
(Alienation's Social Implication)

परकीयकरण की प्रक्रिया समाज में सामाजिक विघटन को उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध होती है। सामाजिक संगठन की पहली शर्त यही है कि समाज की सभी निर्णायक इकाइयाँ एकजुट होकर सामान्य लक्ष्य और उद्देश्यों के हेतु कार्य करें। परन्तु परकीयकरण ठीक इसके विपरीत अवस्था की उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध होता है क्योंकि इसके अन्तर्गत व्यक्ति में अपने समूह व समुदाय के प्रति अलगावपन पनपता है और सब लोग एक साथ मिलकर सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में कार्य नहीं कर पाते हैं। इससे सामाजिक विघटन का आधार तैयार होता है।

परकीयकरण के अन्तर्गत शक्तिहीनता की भावना पनपती है। लोग यह समझने लगते हैं कि सामाजिक मामलों में निर्णय का अधिकार केवल कुछ सत्ता सम्पन्न और धनी लोगों के हाथ में ही केन्द्रित है और आम जनता को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, इसीलिए बृहत्तर समाज या समुदाय के सन्दर्भ में वे स्वयं शक्तिहीन हैं। शक्तिहीनता की यह भावना सामाजिक एकता व संगठन को बनाए रखने में अत्यन्तं बाधक सिद्ध होती हैं और धीरे-धीरे सामाजिक विघटन की स्थिति पनपती है।

परकीयकरण इस रूप में भी सामाजिक विघटन को उत्पन्न करने में मदद करता है कि इसके अन्तर्गत व्यक्ति में अर्थहीनता की भावना पनपती है अर्थात् व्यक्ति बृहत्तर सामाजिक सन्दर्भ में अपने कार्य तथा निर्णयों को अर्थहीन पाता है और इसलिए व्यक्ति अपने को अपने-आप में समेट लेता है और सामूहिक हितों की दिशा में कार्य करना बन्द कर देता है। इसके फलस्वरूप विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

परकीयकरण की प्रक्रिया समाज में नियमहीनता को भी पनपाती है और नियम-हीनता वह स्थिति है जबकि व्यक्ति में यह गलत धारणा घर कर जाती है कि उसके उद्देश्यों की पूर्ति समाज द्वारा सामान्य तरीकों व व्यवहारों के द्वारा ही परी की जा सकती है। जब समाज के सदस्य सामान्य मान्यता प्राप्त उद्देश्यों की प्राप्ति समाज द्वारा मान्यता प्राप्त साधनों के द्वारा नहीं करते हैं अथवा इन साधनों से उनका विश्वास हट जाता है तो उसका अन्तिम परिणाम सामाजिक विघटन ही होता है।

परकीयकरण से व्यक्ति में अकेलेपन, उदासीनता, विराग, खालीपन के भाव आदि उत्पन्न होते हैं। इसके परिणामस्वरूप समाज के सामान्य सहभागी उद्देश्यों और विश्वासों के प्रति उसकी आस्था कम होती जाती है। वह मशीन के पुर्जे की भाँति काम करता रहता है। उसकी सामाजिक मामलों में न कोई रुचि होती है और न कोई लगाव। अगर वह किसी उद्योग में कार्य करता है तो उसका एकमात्र उद्देश्य वेतन प्राप्त करना होता है। वह उद्योग से प्राप्त लाभ-हानि के सम्बन्ध में अपना दिमाग नहीं लगाता। उसकी उन्नति की बात नहीं सोचता। मशीन की तोड़-फोड़ करते हुए भी वह नहीं हिचकिचाता क्योंकि स्वयं उद्योग से या उद्योगपति से उसका कोई लगाव नहीं है। जब यही अलगावपन समाज के प्रत्येक क्षेत्र में फैल जाता है तो विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि परकीयकरण जिन परिणामों को जन्म देता है सामाजिक विघटन का उन्हीं परिणामों से पोषण होता है। .

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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